A film on jihad

बहुत लंबे समय से हम एक जुमला सुनते आ रहे हैं के "फिल्म समाज का दर्पण होती है"। लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है आज हमारे भारत का सारा हिंदू समाज ये अच्छी तरह से यह समझता है कि किस तरह से इन 70 सालों में फिल्मों के माध्यम से झूठ दिखा दिखा कर हमारे समाज को तोड़ा गया।

नमस्कार। मेरा नाम रिकी भट्ट है और मैं एक फिल्म निर्माता हूं। हमारे देश में एक गंभीर समस्या ने जोरो से अपने पंख फैलाए हैं और वह समस्या है लव जिहाद। हमारे हिंदू समाज की आशा है कि कोई तो वह अनकहा सच, बिना किसी मंकी-बैलेंसिंग के, दिखाएं जिससे हम अपने समाज को ऐसी बुराइयों से अवगत करा सकें। जो का त्यों। वही प्रयास हमने किया है और जैसा कि हम सभी जानते हैं कि "सरकार बेशक हमारी है लेकिन सिस्टम उनका ही है" तो हमारी फिल्म सेंसर बोर्ड में अटकी हुई है। इस प्रक्रिया में काफी पैसा खर्च हो चुका है और अभी भी खर्च हो रहा है। हो सकता है हमें अदालत का दरवाज़ा भी खटखटाना पड़े। लड़ाई बहुत लंबी और महंगी है जो हमारे जैसा छोटा प्रोडक्शन हाउस अभी अफोर्ड नहीं कर सकता।

कुछ मित्रों ने यह क्राउडफंडिंग का मार्ग सुझाया है ताकि हमें हमारे इस प्रयास का कुछ तो फल मिले, कुछ तो लागत वापस मिल सके ताकि हम अगले कार्यों पर ध्यान दे सकें।
तो हमारी आप सभी से यह अपील है कि इस लड़ाई को लड़ने में हमारी सहायता करें। यह लड़ाई केवल हमारी नहीं आपकी भी है। कला और साहित्य एक बहुत ही बड़ा माध्यम है जन चेतना का।

धन्यवाद।


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A film that shows the true nature of anti hindu activities without any monkey balancing.






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